Mar 2, 2024
गुड़गांव, 11 अक्टूबर, 2017: इट्स इन योर हेंड, टेक एक्शन,” के उद्देश्य के साथ पारस अस्पताल गुड़गांव ने लोगों के बीच अर्थराइटिस पर जागरूकता फैलाने के लिए विश्व आर्थराइटिस डे के अवसर पर पौधारोपण अभियान का आयोजन किया।
लगभग 200 घुटने रिप्लेसमेंट के मरीज, जिनका अस्पताल द्वारा सफलतापूर्वक इलाज किया गया है और वह बेहतर जीवन जीकर दूसरों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर रहे हैं कि अर्थराइटिस वाले लोग भी सामान्य जीवन जी सकते हैं। अर्थराइटिस इन दिनों भारत में विकलांगता का प्रमुख कारण है। पिछले वर्ष से गठिया रोगियों की संख्या में उच्च वृद्धि हुई है। लगभग 20% से 25% रोगी हर साल अर्थराइटिस के दर्द का सामना करते हैं। इन दिनों चल रही परेशान में युवा पीढ़ी 50 से 60 वर्ष के बुजुर्गों की तुलना में अर्थराइटिस की समस्याओं से अधिक परेशान हो रही है।
“वर्ल्ड आर्थराइटिस डे की भावना को ध्यान में रखते हुए, हम इट्स इन योर हेंड, टेक एक्शन’ के उद्देश्य के साथ अपने स्वयं के अभियान को व्यवस्थित करके खुद को कर्तव्यनिष्ठ और प्रोत्साहित महसूस करते हैं और लोगों को खुद के द्वारा इस मामले में एक्शन लेने और स्वयं आर्थराइटिस के इलाज कराएं, इसं संबंध में प्रोत्साहित करते हैं। प्लांटेशन ड्राइव में भाग लेने वाले 200 लोग घुटनों पर अपेक्षाकृत हाई स्ट्रेस डालते हुए घुटनों को मोड़कर बागवानी से संबंधित कार्य कर सकते हैं। ये सभी लोग अर्थराइटिस से पीड़ित थे और घुटने के ट्रांसप्लंट से गुजर चुके हैं। डॉ विवेक लोगानी, चीफ ऑफ ज्वाइंट रिप्लेसमेंट सर्जरी, पारस हॉस्पीटल गुड़गांव ने कहा कि, यह दिखाने के लिए है कि उन्होंने सर्जरी के माध्यम से कैसे फायदा उठाया है और दैनिक जीवन की गतिविधियों का संचालन करने में सक्षम हैं।
वर्ल्ड अर्थराइटिस डे के अवसर पर संगठित,जो गठिया और रुमेटिज्म इंटरनेशनल द्वारा 1996 में स्थापित किया गया था, एक वैश्विक पहल को संधिशोथ (रिह्यूमेटिक) और मस्कुलोस्केलेटिकल रोगों को प्रभावित करने वाले कारकों पर जागरूकता बढ़ाने के उद्देश्य से किया गया था। यह हर साल 12 अक्टूबर को मनाया जाता है। इस पहल में नीति बनाने और प्रभावित सपोर्ट सिस्टम के साथ लोगों को परिचित करने के प्रयासों के अलावा, मेडिकल कम्यूनिटी और आम जनता के बीच जागरूकता फैलाने का प्रयास करना है।
मैपैल एमेरल्ड रिज़ॉर्ट में आयोजित कार्यक्रम में मरीजों के इंर्टेक्शन के साथ मनोरंजक खेल और सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए गए थे ताकि जानकारीपूर्ण और मनोरंजक अनुभव प्राप्त किया जा सके। मरीजों ने अर्थराइटिस से पीड़ित होने और दर्शकों में उपस्थित अन्य लोगों को एजूकेट करने के साथ उनसे इलाज संबंधी अपने अनुभव चुनौतियों को साझा किया।
“डॉ विवेक लोगानी ने कहा, “हम इस तरह की प्रतिक्रिया से खुश हैं कि इस पहल का विकास हुआ है और बेहतर प्रदर्शन करने और इस तरह के प्रयासों के साथ हमारी पहुंच बढ़ाने के लिए प्रेरित महसूस किया गया है। मरीजों ने दूसरों के साथ अपनी हर्ट-वार्मिंग कहानियों को साझा किया और इस इंटरैक्शन ने लोगों के बहुत सारे संदेहों को दूर करने में मदद की। इसके अलावा, मरीजों ने जीवन शैली को बदलने और स्वास्थ्य पर फोकस करने के साथ-साथ स्वस्थ जीवन शैली को आगे बढ़ाने पर जोर दिया। भारत में अब 180 मिलियन का आंकड़ा पार कर गठिया के रोगियों में खतरनाक वृद्धि अब चौंकाने वाली नहीं है। वृद्धावस्था अब गठिया से जुड़ा एक कारक नहीं है। युवाओं में ऑस्टियोआर्थराइटिस में वृद्धि के साथ, अर्थराइटिस अब दुनिया भर के ओर्थोपियास्टिस्टों के बीच चिंता का एक प्रमुख कारण है। महत्वपूर्ण पोषण और व्यायाम की कमी अर्थराइटिस होने में प्रमुख योगदानकर्ता हैं।
गठिया में योगदान करने वाले कारक मुख्य तौर पर मोटापा, धूम्रपान और मोबिलिटी की कमी, अनुचित या पीठ निकालकर बैठेने का तरीका और अचानक से लगी स्पोर्ट चोटें हैं जिन्हें आमतौर पर अनदेखा कर दिया जाता है। अर्थराइटिस हमारे द्वारा अपनाई जा रही जटिल जीवनशैली से जुड़ा हुआ है। पूंजीवादी दुनिया में जीवित रहना तनावपूर्ण और टैक्सिंग हो सकता है। कूल्हे और जांघों के पास जमा फैट अक्सर अर्थराइटिस घटनाओं में योगदान करते हैं। यह मोबिलिटी और लक्षणों को अनदेखा करने की कमी के कारण है।
आम आबादी को प्रभावित करने वाले दो सबसे सामान्य प्रकार रिह्यूमेटोइड और ओस्टियोआर्थराइटिस हैं। 20 से 40 वर्षों के बीच आयु वर्ग की महिलाओं ने रिह्यूमेटोइड बर्थराइटिस से पीड़ित होना शुरू कर दिया है जो कई जोड़ों को प्रभावित करता है जबकि वृद्ध महिलाएं ओस्टियोआर्थराइटिस से पीड़ित होती हैं जो जोड़ों को जोड़ते हुए कार्टिलेज के धीरे-धीरे पहनते फाड़ते होते हैं। हैरानी की बात है, अब हम 16 साल से कम उम्र के बच्चों में अर्थराइटिस में वृद्धि देख रहे हैं। इसका मुख्य कारण ऑटोइम्यून (जहां अपने स्वयं के शरीर की प्रतिरक्षा, स्वस्थ कोशिकाओं को विदेशी एजेंट समझकर इस पर अटैक करना शुरू कर देती है) है।
डॉ विवेक लोगानी ने कहा कि “गठिया का मुकाबला करने का सही तरीका अपने लक्षणों को अनदेखा नहीं करना है, जो शुरुआत से स्पष्ट होते है। दर्दनाक और सूजे (इनफ्लेम्ड ज्वांइट्स) जोड़, संतुलन (बेलेंसिंग) में कठिनाई, नियमित गतिशीलता (रेग्यूलर मोबिलिटी) में कठिनाई (सीढ़ियों से नीचे चलना, बैठे आदि), और जोड़ों के आस-पास स्टिफनेस, अर्थराइटिस के लिए चेतावनी हैं। रह्यूमेटालॉजिस्ट से तत्काल परामर्श लिया जाना चाहिए।
शरीर के वजन को हमेया चेक करते हुए और स्पाइन स्ट्रेटनिंग व्यायाम के साथ व्यायाम करने से बोन डेंसिटी में सुधार का एक लंबा रास्ता तय किया जा सकता है। उच्च एंटीऑक्सिडेंट, हरी सब्जी और विटामिन डी और कैल्शियम युक्त भोजन का सेवन अत्यंत महत्वपूर्ण है। हालांकि स्पोर्ट् एक्टिविटीज में घायल हो जाना आम है, लेकिन हल्की चोटों में भी तुरंत ध्यान देना चाहिए। वे हड्डी को नुकसान पहुंचाकर अर्थराइटिस का कारण बन सकती हैं।
दुनियाभर में लाखों लोग इस बीमारी से ग्रस्त हैं। इसे कांट्रेक्टिंग के बाद, उचित देखभाल आवश्यक है। एमआरआई या एक्स-रे के माध्यम से तकनीकी पद्धतियों ने ज्वांट्स के इलाज की समस्याओं में कमी की है। अफोर्डेबल नी कैप अब भारत में एक सामान्य प्रिवलेंस है। वृद्धावस्था में मेटाबॉलिज्म में उतार चढ़ाव होता है। वृद्ध आबादी में कमजोर हड्डियां मिलना आश्चर्य की बात नहीं है। कुछ विशिष्ट अनुशंसित व्यायाम बुजुर्गों के लिए होते हैं जो बिना कड़ी मेहनत के प्रयासों के साथ अधिकतम लाभ प्रदान करते हैं। अर्थराइटिस को खत्म करना केवल लक्षणों पर निरंतर निगरानी और शारीरिक स्वास्थ्य के निरीक्षण से ही संभव होगा। डिग्रडिंग हड्डियों का कोई विकल्प नहीं है, लेकिन आप इसका सामना कैसे करते हैं, यह आप पर निर्भर है।